जब भी कोई मेहनत की कमाई से अपने सपनों की कार खरीदता है तो उसके मन में शायद ही यह बात आती हो कि जब चंद वर्षों बाद वह उसे बेचकर नई कार खरीदने का मन बनाएगा तो उसकी रीसेल वैल्यू कितनी कम आंकी जाएगी। कैसे तय होती है रीसेल वैल्यू, इस पर पंकज घिल्डियाल का आलेख
मार्केट में जब भी कोई चमचमाती नई कार लॉन्च होती है तो मन में यही सवाल उठता है कि काश, मैंने कार खरीदारी में जल्दबाजी न की होती। दरअसल नित नए आधुनिक फीचर से लैस कार दिन-ब-दिन बेहतर से बेहतर होती जा रही हैं, जिनमें सड़क पर उतर रही कारों में के सीरीज इंजन, तो वहीं अत्यधिक सुरक्षित माना जाने वाला एयर बैग। एबीएस सिस्टम भी कारों की शान को बढ़ा रहा है। कार के कुछ फीचर तो पहले से ही मौजूद थे, लेकिन इन्हें अपनाने वालों का वर्ग अलग था। बात माइलेज की हो तो अब मार्केट में ऐसी कारें मौजूद हैं, जो 25 कि.मी. प्रति लीटर का दावा करती हैं, जबकि आमतौर पर कारें 10-15 की माइलेज देती हैं। हो सकता है कि कुछ वर्ष पहले जब आपने कार खरीदी हो उस वक्त आपके बजट ने आगे बढ़ने की इजाजत ही न दी हो। इसके अलावा शोरूम से ही सीएनजी/एलपीजी फिटिड कार खरीदारी का विकल्प भी खुला है। इन्हीं में से वे कुछ कारण होते हैं, जो नई कार खरीदारी के लिए आकर्षित करते हैं। मगर समस्या तब दिखाई देती है, जब हमारी कार की वैल्यू हमारी सोच से काफी कम आंकी जाती है। आइए जानते हैं कार एक्सचेंज के वक्त कार की वैल्यू लगाते हुए जिन बातों का ध्यान रखा जाता है।
गाड़ी अगर दुर्घटनाग्रस्त हुई हो
अगर गाड़ी कहीं दुर्घटनाग्रस्त हुई तो उसे छिपाना नहीं चाहिए। एक ऑटो एक्सपर्ट कार के पेंट को देखते ही कहानी समझ जाता है। कार की वैल्यू लगाते समय बहुत महत्त्वपूर्ण होता है कि कार कहीं एक्सीडेंट्ल तो नहीं।
गाड़ी के अब तक के मालिकों की संख्या
अगर आप गाड़ी के पहले मालिक हैं तो आपको रीसेल वैल्यू में कोई खास असर नहीं पड़ेगा। इसके अलावा आप अगर दूसरे या तीसरे मालिक हैं तो यह रकम प्रति मालिक के अनुसार कम कर दी जाती है।
कार का माइलेज व मेक
यह एक महत्त्वपूर्ण फैक्टर है। आपकी कार प्रतिवर्ष जितनी कम चली होगी, उतनी ही ज्यादा रकम आप रीसेल में पा सकते हैं। 10,000-12,000 किलोमीटर प्रतिवर्ष को औसत माना जाता है। प्रतिवर्ष इससे अधिक चलने पर गाड़ी की कीमत का मीटर डाउन होने लगता है। जिस तरह इंश्योरेंस करवाते वक्त व्हीकल की वैल्यू उसके मेक ईयर के अनुसार लगाई जाती है, कुछ उसी तरह गाड़ी की कीमत का आंकलन भी किया जाता है कि वह कितने वर्ष पुरानी है, कितनी चली है।
गाड़ी का हाल बेहाल तो नहीं
कुछ लोग जब कार बेचने जाते हैं, तो उनकी कार देखते ही कार खरीदने का मन नहीं होता। देख कर पता चलता है कि वह सर्विस सेंटर कभी नहीं गई। कार के इंटीरियर की स्थिति खराब, कार के बॉडी पेंट का जगह-जगह से उखड़ना, बहुत से छेद व डेंट। ऐसी कार की यकीनन रीसेल वैल्यू कम हो जाती है।
सर्विसिंग नियमित रही या नहीं
आमतौर पर एक कार की सर्विसिंग 10 हजार किलोमीटर या साल भर में करवा दी जानी चाहिए। अगर आप ऐसा करते हैं तो उस ऑथराइज्ड सर्विस सेंटर के सभी बिलों को भी संभाल कर रखें।
गाड़ी के कागजातों की क्या स्थिति है
कहा जाता है कि आपने गाड़ी में एक छोटा सा नट लगवाया हो या कार की बेहतरी के लिए कोई भी काम करवाया हो, उसका बिल संभाल कर रखना न भूलें। इससे पता लग सकेगा कि कार की देखभाल आपने कैसे की है। गाड़ी के इंश्योरेंस, प्रदूषण प्रमाण पत्र, आरसी व गाड़ी पर लगे अन्य इलेक्ट्रिकल कंपोनेंट के बिलों को संभाल कर रखा जाना चाहिए, ताकि खरीदार को उन्हें अपने नाम पर ट्रांसफर करवाने में दिक्क्त न आए।
गाड़ी का उपयोग किसलिए किया जाता था
गाड़ी का इस्तेमाल आपके खुद के लिए व परिवार के लिए किया जाता रहा है या फिर इसका इस्तेमाल किसी कार्यालय की कै ब के रूप में। ऐसे वे तमाम फैक्टर हैं, जो वैल्यू पर असर डालते हैं।
ब्रांड का भी होता है असर
दरअसल कुछ कार ब्रांड लोगों के भरोसे पर खरे उतरते हैं। लोग उन ब्रांड पर आंख बंद कर भरोसा करते हैं। इसके अलावा उनमें मौजूद फीचर, माइलेज व सस्ते पार्ट्स की उपलब्धता भी रीसेल वैल्यू तय करती है। इसके साथ ही ऐसी बहुत सी एजेंसी हैं, जो बेस्ट रीसेल वैल्यू ब्रांड पर अपनी नजर रखती हैं।
(विभिन्न ऑटो एक्सपर्ट से बातचीत पर आधारित)
रखें खास ख्याल
जब गाड़ी खरीदें तो फ्यूचर में उसकी ब्रांड वैल्यू और मार्केट में डिमांड का एनालिसिस जरूर कर लें। मार्केट में आयी किसी नयी गाड़ी को तुरंत ट्राई करने के इरादे से न खरीदे, क्योंकि आगे चलकर अगर आप उसे बेचना चाहेंगे तो खरीदार हमेशा सक्सेस ब्रांड को ही महत्व देता है।